Human Rights Watch ने World Report 2024 में वर्ष 2023 के भारत की घटनाओं को किया उजागर



ह्यूमन राइट्स वॉच ने वर्ल्ड रिपोर्ट 2024 जारी की हैं. इसमें वर्ष 2023 के भारत की घटनाओं को उजागर करते हुए केंद्र सरकार की जमकर आलोचना की गई हैं. इस रिपोर्ट में कहा गया हैं कि...

प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने धार्मिक और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव और उन्हें अपमानित करने वाली नीतियां लगातार जारी रखीं. इस कारण मणिपुर, जहां नृजातीय संघर्ष में सैकड़ों लोग मारे गए, सहित देश के अनेक हिस्सों में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है.

भाजपा शासित राज्यों में पुलिस अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराधों की समुचित जांच में विफल रही जबकि प्रशासनिक अधिकारियों ने पीड़ित समुदायों, और साथ ही ऐसे उत्पीड़नों का विरोध करने वाले लोगों के खिलाफ़ सीधे दंडात्मक कार्रवाई की. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जैसे संवैधानिक प्राधिकारों और बच्चों, महिलाओं, धार्मिक अल्पसंख्यकों, आदिवासी समूहों और दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए प्राधिकारों ने स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं किया.

भारत ने डिजिटल सेवा संबंधी सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया ताकि सामाजिक और आर्थिक सेवाओं का विस्तार किया जा सके. हालांकि, बड़े पैमाने पर इंटरनेट पर पाबंदियां, निजता और डेटा सुरक्षा की कमी और ग्रामीण समुदायों तक इंटरनेट सेवाओं की असमान पहुंच ने इन प्रयासों को बाधित किया.

सितंबर में, भारत ने दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले ग्रुप, जी20 के शिखर सम्मेलन की अपनी मेजबानी में अध्यक्षता की, उल्लेखनीय है कि ऐसा मौका इसके सदस्य देशों को बारी-बारी से मिलता है. इसमें भारत ने अफ्रीकी संघ को स्थायी सदस्य के रूप में शामिल करने और समूह को अधिक प्रतिनिधिमूलक एवं समावेशी बनाने पर जोर दिया.

जम्मू एवं कश्मीर

भारत के सरकारी तंत्र ने जम्मू और कश्मीर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण सभा और अन्य अधिकारों पर प्रतिबंध लगाना जारी रखा. वहां से पूरे साल सुरक्षा बलों द्वारा गैर-न्यायिक हत्याओं की रिपोर्टें सामने आती रहीं.

आलोचकों और मानवाधिकार रक्षकों को आतंकवाद के मनगढ़ंत आरोपों के आधार पर गिरफ्तार किया गया और उनके यहां छापे मारे गए. 22 मार्च को, प्रमुख कश्मीरी मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज़, जिन्हें आतंकवाद के आरोप में नवंबर 2021 से हिरासत में रखा गया था, पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन मुहैया कराने का आरोप लगाया गया. 20 मार्च को परवेज़ के मानवाधिकार संगठन से जुड़े पत्रकार इरफ़ान मेहराज को भी इसी मामले में गिरफ़्तार कर लिया गया. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने परवेज़ की रिहाई की बार-बार मांग की और नागरिक समाज और मानवाधिकार रक्षकों को निशाना बनाने के लिए यूएपीए के इस्तेमाल की निंदा की है.

अप्रैल 2023 में, संयुक्त राष्ट्र के छह मानवाधिकार विशेषज्ञों ने मानवाधिकार रक्षक मुहम्मद अहसान उनतू के कथित मनमानी हिरासत और उनके साथ दुर्व्यवहार पर भारत सरकार को पत्र लिखा. इसमें कहा गया कि उनकी हिरासत पत्रकारिता और मानवाधिकार की वकालत के काम में लगे लोगों को “हैरान-परेशान करने, डराने, हिरासत में लेने और दंडित करने की रणनीति का हिस्सा प्रतीत होती है.”

मई में, जी-20 टूरिज्म वर्किंग ग्रुप ने कश्मीर में बैठक की. इसके बाद अल्पसंख्यक मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत को यह कहना पड़ा कि "जब मानवाधिकारों का व्यापक उल्लंघन बढ़ता जा रहा है, तो ऐसे समय में जी20 अनजाने में सामान्य स्थिति की बहाली का दिखावा के समर्थन हेतु आवरण प्रदान कर रहा है."

सुरक्षा बल को उत्पीड़न करने की खुली छूट

यातना और गैर-न्यायिक हत्याओं के आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी रहा.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 2023 के पहले नौ माह में पुलिस हिरासत में 126 मौतें, न्यायिक हिरासत में 1,673 मौतें और 55 कथित गैर-न्यायिक हत्याएं दर्ज कीं.

13 अप्रैल, 2023 को उत्तर प्रदेश में पुलिस ने राजनीतिज्ञ अतीक अहमद के 19 वर्षीय बेटे और उसके सहयोगी की गोली मारकर हत्या कर दी. अतीक अहमद आजीवन कारावास की सजा काट रहा थे और हत्या सहित लगभग 100 आपराधिक मामलों में आरोपी थे. राज्य के भाजपा मुख्यमंत्री ने हत्याओं की तारीफ़ की जबकि भाजपा नेताओं ने खुले तौर पर कहा कि अहमद को भी पुलिस द्वारा या "दुर्घटना" में मारा जा सकता है. अपने बेटे की हत्या के दो दिन बाद, अहमद और उनके भाई को लाइव टेलीविज़न पर करीब से उस वक़्त गोली मार दी गई, जब पुलिस उन्हें नियमित चिकित्सा जांच के लिए ले जा रही थी. राज्य के दो भाजपा मंत्रियों ने हत्याओं को "दैवीय न्याय" बताया. जाहिरा तौर पर, इससे राज्य में कानून के शासन के चरमराने संबंधी चिंता फिर से बढ़ गई.

अप्रैल में, भारत सरकार ने उन सैनिकों पर मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया जिन पर दिसंबर 2021 में नागालैंड के मोन जिले में छह कोयला खनिकों की हत्या का आरोप था. जून 2022 में राज्य पुलिस ने एक मेजर सहित 30 सैनिकों के खिलाफ मामला दर्ज किया था. यह मामला एक विशेष जांच दल की रिपोर्ट के आधार पर दायर किया गया था जिसमें यह पाया गया था कि सेना ने खनिकों को "हत्या करने के स्पष्ट इरादे से" गोली चलाई थी. लेकिन केंद्र सरकार ने अभियोजन की मंजूरी देने से इनकार कर दिया. यह मंजूरी औपनिवेशिक युग के सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (एएफएसपीए) के अनुसार नागरिक कानूनों के अंतर्गत कार्रवाई के लिए जरूरी होती है. यह कानून लंबे समय से भारत के सशस्त्र बलों को जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के कई राज्यों में मानवाधिकारों उल्लंघन के गंभीर मामलों के लिए जिम्मेदार ठहराए जाने से बचाता रहा है.

धार्मिक अल्पसंख्यक, दलित और आदिवासी समूह

31 जुलाई को, हरियाणा के नूंह जिले में एक हिंदू जुलूस के दौरान सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी और इसने तेजी से आसपास के कई जिलों को अपनी जद में ले लिया. हिंसा के बाद सरकारी तंत्र ने पूर्व की तरह ही मुसलामानों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई में सैकड़ों मुसलामानों की संपत्तियों को अवैध रूप से ध्वस्त कर दिया और अनेक मुस्लिम लड़कों एवं पुरुषों को हिरासत में लिया. इस विध्वंसक कार्रवाई का संज्ञान लेते हुए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार से सवाल किया कि क्या वह "नृजातीय सफाया" कर रही है.

3 मई को पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर में बहुसंख्यक मैतेई और अल्पसंख्यक कुकी जो समुदायों के बीच भड़की हिंसा में नवंबर तक 200 से अधिक लोगों की मौत हो गई, दसियों हजार लोग विस्थापित हुए और सैकड़ों घर एवं चर्च नष्ट कर दिए गए. सरकारी तंत्र ने राज्य में इंटरनेट पर पाबंदी लगाई. प्रधानमंत्री मोदी ने लगभग तीन महीने बाद 20 जुलाई को एक वीडियो सामने आने के बाद इस हिंसा पर प्रतिक्रिया दी. 4 मई के इस वीडियो में मैतेई भीड़ दो कुकी महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड कराते हुए दिखाई दे रही थी.

नागरिक समाज कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि भाजपा के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने हिंदू-बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के हिंसक समूहों को राजनीतिक संरक्षण देकर और कुकी समुदाय पर मादक पदार्थों की तस्करी में संलिप्तता एवं म्यांमार के शरणार्थियों को आश्रय देने का आरोप लगाकर बदनाम किया जिससे समुदायों के बीच विभाजन को बढ़ावा मिला. अगस्त में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य पुलिस ने "स्थिति पर नियंत्रण खो दिया है" और विशेष टीम को मणिपुर में यौन हिंसा सहित अन्य प्रकार की हिंसा की जांच का आदेश दिया. सितंबर में, एक दर्जन से अधिक संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने मणिपुर में जारी हिंसा और उत्पीड़न पर चिंता जताई और कहा कि सरकार की प्रतिक्रिया धीमी और अपर्याप्त है .

मध्य भारत, जहां कई आदिवासी समुदाय रहते हैं, में माओवादी विद्रोहियों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई में ग्रामीणों का उत्पीड़न हुआ. सरकारी तंत्र ने अक्सर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को माओवादी या माओवादी समर्थक बताकर बदनाम करने का प्रयास किया है.

"मैला ढोने" पर आधिकारिक प्रतिबंध के बावजूद - निजी और सार्वजनिक सूखे शौचालयों, खुले में स्थित शौच स्थलों, सेप्टिक टैंकों और खुले एवं बंद गटरों और सीवरों में हाथ से मानव मल साफ करने की अपमानजनक और खतरनाक प्रथा देश भर में जारी रही, जिसमें लोगों की मौतें हुईं और वे घायल हुए. अधिकतर दलितों और सोपानिक जाति व्यवस्था में परंपरा से सबसे नीचे धकेल दिए गए जाति समूहों को यह काम करने के लिए मजबूर किया जाता है.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

सरकारी तंत्र ने नागरिक समाज कार्यकर्ताओं, स्वतंत्र पत्रकारों और यहां तक कि राजनीतिक विरोधियों को धमकियों और राजनीतिक प्रेरित आरोपों के जरिए चुप कराने की कोशिशें तेज कर दीं.

मार्च 2023 में, गुजरात की एक अदालत ने राजनीति से प्रेरित मानहानि के मामले में प्रमुख विपक्षी नेता राहुल गांधी को दो साल जेल की सजा सुनाई. गांधी ने अरबपति उद्योगपति गौतम अडानी, जिनके प्रधानमंत्री के साथ करीबी रिश्ते माने जाते हैं, के खिलाफ संसद में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे. अंततः सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त में राहुल गांधी की सजा पर रोक लगा दी.

जुलाई में, मणिपुर पुलिस ने तीन महिला कार्यकर्ताओं के खिलाफ राजद्रोह, आपराधिक साजिश, मानहानि, वैमनस्य को बढ़ावा देने और शांति भंग करने का मामला दर्ज किया. ये महिलाएं नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन की जांच-पड़ताल टीम का हिस्सा थीं. टीम ने नृजातीय संघर्ष को "राज्य प्रायोजित हिंसा" का नतीज़ा बताया और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की.

सितंबर में, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया द्वारा एक रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद मणिपुर पुलिस ने इसके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए. इस रिपोर्ट में राज्य नेतृत्व द्वारा नृजातीय हिंसा में पक्षपातपूर्ण भूमिका निभाने की बात कही गई थी.

अक्टूबर 2023 में, समाचार वेबसाइट न्यूज़क्लिक, जो मोदी सरकार की आलोचना करती रही है, के कार्यालय और इसके पत्रकारों एवं लेखकों के घरों पर पुलिस ने छापा मारा. यह छापेमारी न्यूज़क्लिक द्वारा चीन से अवैध धन लेने के आरोपों पर की गई, हालांकि वेबसाइट इससे इनकार करती रही है. पुलिस ने समन्वित कार्रवाई करते हुए 30 स्थानों पर छापेमारी की और इसी क्रम में दिल्ली में कार्यकर्ताओं और हास्य कलाकारों के घरों पर भी छापेमारी की. मुंबई में, पुलिस ने कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड के घर पर छापा मारा. मालूम हो कि सीतलवाड को 2002 के गुजरात दंगों के मुस्लिम पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष करने के लिए बार-बार निशाना बनाया जाता है और उन्होंने सरकार की आलोचना करते हुए न्यूज़क्लिक के लिए लेख लिखे थे.

छापे के बाद हुए एक विरोध प्रदर्शन में लेखिका अरुंधति रॉय के संबोधन के बाद सरकारी अधिकारियों ने कहा कि वे 2010 में रॉय के भाषण के आधार पर उन पर और एक कश्मीरी शिक्षाविद् पर कथित तौर पर "विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य बढ़ाने," "सद्भाव बिगाड़ने" और "सार्वजनिक शांति भंग करने" के लिए मुकदमा चलाएंगे. उनके खिलाफ आतंकवाद-निरोधी कानून, यूएपीए के तहत मामला दर्ज भी किया गया.

फरवरी में, भारतीय कर अधिकारियों ने बीबीसी कार्यालयों पर छापा मारा. यह साफ तौर पर दो-भाग वाली उस डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण के खिलाफ बदले की कार्रवाई थी जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मुसलमानों को सुरक्षा प्रदान करने में विफलता को उजागर किया गया था. सरकार ने देश के सूचना प्रौद्योगिकी नियमों के तहत आपातकालीन शक्तियों का उपयोग करते हुए जनवरी में इस बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर भारत में पाबंदी लगा दी.

अगस्त 2023 में, भारत ने व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा कानून लागू लिया, यह कानून सरकार को अनियंत्रित राजकीय निगरानी की व्यापक शक्तियां प्रदान करता है. अप्रैल में, सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिए दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियमावली, 2023 के जरिए ऑनलाइन सामग्री पर अपने नियंत्रण का शिकंजा कसा. ये नियम एन्क्रिप्शन सुरक्षा उपायों को कमजोर करते हैं और मीडिया की स्वतंत्रता, निजता अधिकारों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गंभीर रूप से अवमूल्यन करते हैं. ये नियम सरकार को इसके लिए भी अधिकृत करते हैं कि भारत सरकार से संबंधित "झूठी" या "भ्रामक" समझी जाने वाली किसी भी ऑनलाइन सामग्री की पहचान के लिए मनमानी, व्यापक और अनियंत्रित सेंसरशिप शक्तियों से युक्त "जांच" इकाई स्थापित करे और तकनीकी प्लेटफार्मों एवं अन्य मध्यवर्ती संस्थानों को ऐसी सामग्री हटाने केलिए मजबूर करे. अनुपालन नहीं करने पर कंपनियों को कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है.

भारतीय सरकारी तंत्र ने भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का उल्लंघन करते हुए 2022 में वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा संख्या में इंटरनेट पर पाबंदी लगाना जारी रखा. ये पाबंदियां सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर रहने वाले समुदायों को बेहिसाब तौर पर नुकसान पहुंचाती हैं क्योंकि इन पाबंदियों से ऐसे समुदाय मुफ्त या सब्सिडी वाले राशन और आजीविका, जिसके लिए पर्याप्त इंटरनेट पहुंच जरूरी है, से वंचित कर दिए जाते हैं.

महिला और बालिका अधिकार

एथलीटों के कई हफ्तों के विरोध के बावजूद, भारतीय सत्ता तंत्र ने सत्तारूढ़ भाजपा के सांसद और भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह पर यौन शोषण के आरोपों की जांच में देरी की. अप्रैल में, छह महिलाओं और एक बच्ची ने पुलिस में सिंह के खिलाफ यौन शोषण की शिकायत दर्ज कराई. हालांकि, शिकायतकर्ताओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के बाद ही पुलिस ने जांच शुरू की. मई में, पुलिस ने दो ओलंपिक पहलवानों सहित विरोध करने वाले एथलीटों के साथ जोर-जबरदस्ती की और उन्हें अस्थायी तौर पर हिरासत में लिया. जून में, पुलिस ने अंततः सिंह पर यौन उत्पीड़न, यौन हमला और पीछा करने का आरोप दर्ज किया. इस मामले ने भारत में यौन हमलों के उत्तरजीवियों द्वारा न्याय पाने की राह में आने वाली बाधाओं, खासकर जब आरोपी ताकतवर हो, को उजागर किया.

अधिकारियों ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम संबंधी कानून को ठीक से लागू नहीं किया. आम तौर पर महिलाएं, खास तौर से अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत महिलाएं बदनामी एवं बदले की कार्रवाई के डर से और न्याय पाने में संस्थागत बाधाओं के समक्ष विवश रहती हैं. भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन हिंसा और उत्पीड़न सम्मलेन (सी190) की पुष्टि नहीं की है, हालांकि 2019 में उसने इसके पक्ष में मतदान किया था.

सितंबर में, सरकार ने संसद के निचले सदन और राज्य विधान सभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने के लिए कानून बनाया. भाजपा सरकार ने कहा कि यह कानून, जिस पर 27 वर्षों से काम चल रहा है, तब तक लागू नहीं किया जाएगा जब तक कि भारत में अगली जनगणना पूरी नहीं हो जाती और निर्वाचन क्षेत्रों का नया परिसीमन नहीं किया जाता. इन जटिल प्रक्रियाओं में कई साल लग सकते हैं.

बाल अधिकार

जनवरी 2023 में, एक समाचार संस्थान ने बताया कि एक साल से अधिक समय तक भारत सरकार के स्वामित्व और इसके द्वारा उपयोग किए जाने वाले शिक्षा ऐप दीक्षा ने लगभग 6 लाख छात्रों के साथ-साथ 10 लाख से अधिक शिक्षकों के व्यक्तिगत डेटा को सार्वजानिक कर दिया जिन्हें इंटरनेट पर कोई भी ढूंढ सकता था. ह्यूमन राइट्स वॉच ने पाया कि दीक्षा ने विज्ञापन के लिए डिज़ाइन किए गए ट्रैकर्स का उपयोग कर बच्चों के आंकड़ों को एक तीसरे पक्ष की कंपनी को भेजा. साथ ही इस ऐप के पास बच्चों की उपस्थिति संबंधी सटीक स्थान के बारे में आंकड़े एकत्र करने की क्षमता भी थी, जिसकी जानकारी इसने अपनी गोपनीयता नीति में नहीं दी थी. फरवरी में, सरकार ने ऐप की तीसरे पक्ष द्वारा सुरक्षा जांच कराए जाने की घोषणा की और अपने ऐप का उपयोग करने वाले बच्चों और शिक्षकों के निजी आंकड़ों की बेहतर सुरक्षा के लिए प्रतिबद्धता जताई.

सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए के समुदायों के लाखों बच्चों के समक्ष शिक्षा से वंचित किए जाने, बाल विवाह और बाल श्रम का खतरा बना रहा.

विकलांगता अधिकार

भारत में विकलांगता अधिकारों की वकालत करने वाले लोग विकलांगों को संस्थागत देखभाल से निकाल कर समुदाय-आधारित देखभाल मुहैया कराने के प्रयासों में कमी पर चिंता व्यक्त करते रहे हैं. मई में, ह्यूमन राइट्स वॉच ने पाया कि विकलांग बच्चों और वयस्कों के लिए दिल्ली के बाहरी इलाके में स्थित सरकार द्वारा संचालित संस्थान में मनमाने हिरासत, भीड़भाड़ और जेल जैसी स्थितियां हैं. साथ ही वहां पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी और शिक्षा से वंचित किए जाने जैसी समस्याएं भी मिलीं. बहरहाल, संस्था की शासी परिषद ने सुधारों की घोषणा की है.

यौन उन्मुखता और लैंगिक पहचान

अक्टूबर में, सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाहों को वैध विवाह का दर्जा देने से इंकार कर दिया, इसके बजाय समलैंगिक जोड़ों को विवाह से जुड़े कुछ लाभ देने पर विचार करने के लिए एक पैनल गठित करने की सरकार की पेशकश स्वीकार कर ली.

शरणार्थी अधिकार

भारतीय सरकारी तंत्र ने अप्रवासन से जुड़े अपराधों के लिए सैकड़ों रोहिंग्या शरणार्थियों को हिरासत में लेना जारी रखा. 24 जुलाई को, उत्तर प्रदेश पुलिस ने अप्रवासन कानूनों के तहत महिलाओं और बच्चों सहित 74 रोहिंग्या शरणार्थियों को यह कहते हुए गिरफ्तार कर लिया कि उनके पास वैध दस्तावेज नहीं हैं. 18 जुलाई को, जम्मू में सैकड़ों रोहिंग्या शरणार्थियों द्वारा भूख हड़ताल सहित अन्य तरीकों से अपने अनिश्चितकालीन हिरासत का विरोध करने पर भारतीय सरकारी तंत्र ने आंसू गैस के गोले छोड़े और उनकी पिटाई की. घटना के दो दिन बाद, खबरों के मुताबिक आंसू गैस के संपर्क में आने से एक रोहिंग्या शिशु की मौत हो गई.

9 अगस्त को, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा कि म्यांमार की लगी सीमा से बड़ी संख्या में कुकी शरणार्थियों के आने से मैतेई समुदाय के बीच पैदा हुई "असुरक्षा" के कारण मणिपुर में उपद्रव और हिंसा हुई. यह भाजपा नेताओं द्वारा शरणार्थियों के खिलाफ झूठे, पूर्वाग्रहपूर्ण और उन्हें बदनाम करने वाले बयान देने का एक उदाहरण था.

पर्यावरण और मानवाधिकार

अगस्त में, पर्यावरण कार्यकर्ताओं और आदिवासी समुदायों के मुखर विरोध के बावजूद, भारतीय संसद ने वन संरक्षण संशोधन अधिनियम पारित कर दिया. यह कानून मौजूदा सुरक्षा उपायों को कमजोर करता है और इस कारण एक-चौथाई भारतीय जंगलों को मिला कानूनी संरक्षण ख़त्म हो सकता है. इससे पूर्व से संरक्षित क्षेत्रों में उद्योग, खनन और बुनियादी ढांचे के विकास संबंधी गतिविधियां शुरू होंगी और यह आदिवासी समुदायों के पारंपरिक क्षेत्रों के अतिक्रमण का खतरा पैदा करता है.

प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय किरदार

जुलाई में, यूरोपीय संसद ने मणिपुर में नृजातीय हिंसा पर एक प्रस्ताव पारित कर मांग की कि भारतीय सरकारी तंत्र धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक उपाय करे, सरकार के आलोचकों पर आपराधिक कार्रवाई नहीं करे, हिंसा की स्वतंत्र जांच की अनुमति दे और इंटरनेट शटडाउन समाप्त करे. भारत सरकार ने इस प्रस्ताव की निंदा की और इसे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप एवं "औपनिवेशिक मानसिकता" का परिचायक बताया. यूरोपीय संघ के नेता और संयुक्त राष्ट्र में यूरोपीय संघ, देश में मानवाधिकारों के हनन के बारे में चिंता व्यक्त करने के प्रति उदासीन रहे.

जून में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने मोदी की चार दिवसीय राजकीय यात्रा की मेजबानी की, इस यात्रा के दौरान मोदी ने अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित किया. कई भारतीय प्रवासी कार्यकर्ताओं और समूहों ने मोदी शासन में मानवाधिकारों की ख़राब स्थिति का विरोध किया और छह डेमोक्रेट सांसदों ने अमेरिकी कांग्रेस में उनके भाषण का बहिष्कार किया. व्हाइट हाउस के एक प्रवक्ता ने वॉल स्ट्रीट जर्नल के उस रिपोर्टर के ऑनलाइन उत्पीड़न की भी कड़ी निंदा की, जिसने वाशिंगटन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन के दौरान धार्मिक अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर मोदी से सवाल पूछे थे.

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने 14 जुलाई की सैन्य परेड के लिए मोदी को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया और उन्हें फ्रांस के सर्वोच्च सम्मान लीजन ऑफ ऑनर से सम्मानित किया. यात्रा के दौरान, भारत ने फ्रांस के साथ अरबों डॉलर के हथियार सौदे की घोषणा की, लेकिन दोनों देश ने मानवाधिकारों पर कोई चर्चा नहीं की.

एक दशक की बातचीत के बाद अप्रैल में ऑस्ट्रेलिया और भारत ने एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए. एक महीने बाद मोदी की सिडनी यात्रा के दौरान, ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ ने मोदी सरकार के मानवाधिकार संबंधी रेकॉर्ड पर चर्चा से परहेज किया. इसके बजाय उन्होंने अपनी यह बात दोहराई कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है.

विदेश नीति

सितंबर में, भारत ने नई दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन में एक प्रस्ताव पर सहमति बनाई. बयान में केवल "मानवीय पीड़ा और यूक्रेन में युद्ध के अतिरिक्त दुष्प्रभावों" का जिक्र किया गया, लेकिन इसमें रूस के अत्याचारों या वैश्विक अनाज आपूर्ति को बाधित करने में उसकी भूमिका की निंदा नहीं की गई. हालांकि, समूह में खाद्य असुरक्षा, लैंगिक असमानता और वैश्विक ऋण से जुड़े जोख़िमों का प्रबंधन करने सहित अन्य चुनौतियों का समाधान करने के लिए कदम उठाने पर सहमति हुई.

भारत संयुक्त राष्ट्र के कई महत्वपूर्ण प्रस्तावों के दौरान गैरहाजिर रहा. इन प्रस्तावों में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा एवं यूक्रेन में कथित युद्ध अपराधों और सूडान में संघर्ष से संबंधित गंभीर उत्पीड़नों की जांच शामिल हैं.

सितंबर में, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने घोषणा की कि "भारत सरकार के एजेंटों और कनाडा में एक कनाडाई सिख अलगाववादी नेता की हत्या के बीच संभावित संबंध के विश्वसनीय आरोपों" की जांच की जाएगी. इस घोषणा के बाद भारत और कनाडा के बीच तनाव बढ़ गया. भारत ने इन आरोपों का खंडन किया. साल की शुरुआत में भारत ने अपने राजनयिकों की सुरक्षा को लेकर कनाडा के समक्ष चिंता जाहिर की थी.



(नोट: यह लेख ह्यूमन राइट्स वाच के है, इसका एनडीडी न्यूज़ से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई संबंध नहीं हैं.)

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