नई ठेका कंपनी में दस्तावेज जमा करने के नाम पर सफाईकर्मियों को किया जा रहा प्रताड़ित

इन्दिरा गांधी दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी फॉर वुमेन (आईजीडीटीयूडब्लू) में निकाले गए सफाई कर्मचारियों को पुन: नौकरी देने के लिए अनावश्यक दस्तावेजों की माँग द्वारा प्रताड़ित करने के खिलाफ सफ़ाई कामगार यूनियन (एसकेयू) ने ज्ञापन सौंपा। ज्ञात हो कि विशविद्यालय के सफाई कर्मचारियों को दिनांक 14 सितंबर को एक दिन की सूचना पर नौकरी से निकाल दिया गया था। लेकिन सफाई कर्मचारियों के कड़े विरोध और प्रशासन से हुई बातचीत के बाद, रजिस्ट्रार द्वारा कर्मचारियों को काम पर रखे जाने का आश्वासन दिया गया। सफाई कर्मचारियों से कहा गया कि वह 15 दिनों के भीतर नयी कंपनी द्वारा माँगे जा रहे सभी दस्तावेजों को नए ठेकेदार के ऑफिस में जाकर जमा कर दे। कर्मचारियों से कहा गया कि इन 15 दिनों कि अवधि में जो कर्मचारी दस्तावेज़ जमा नहीं कर सकेगा, उसे नौकरी पर नहीं रखा जाएगा। इसके साथ ही कर्मचारियों को यह भी बतलाया गया कि जो कर्मचारी दस्तावेज़ जमा कर देगा, जरूरी नहीं कि उसे नौकरी मिल ही जाएगी, क्योंकि दस्तावेजों कि जाँच और नयी ठेका कंपनी कि नियुक्ति प्रक्रिया के अनुसार कर्मचारी को इंटरव्यू आदि की प्रक्रिया से गुजरना होगा। इस पूरी स्थिति के बाद से सफाई कर्मचारियों में डर का माहौल बना हुआ है और उन्हें नौकरी चले जाने का डर सता रहा है।

नयी ठेका कंपनी ने सफाई कर्मचारियों से दस्तावेजों के रूप में आठवीं पास सर्टिफिकेट, बायो डाटा, मेडिकल सर्टिफिकेट, चरित्र प्रमाण पत्र, पुलिस वेरिफिकेशन, एक्सपिरियन्स सर्टिफिकेट, पैन कार्ड, कैन्सल चेक आदि मांगा है। बताना चाहेंगे कि विश्वविद्यालय में ज़्यादातर सफाई कर्मचारी दलित-गरीब परिवारों से आने व ऐतिहासिक रूप से पिछड़े होने के कारण अल्पशिक्षित या अनपढ़ हैं। इनमें खासकर महिला सफाई कर्मचारी अधिक पिछड़ेपन का शिकार हैं। इस बात का संज्ञान होने के बावजूद कर्मचारियों से आठवीं पास सर्टिफिकेट कि गैर-जरूरी माँग करना उनको काम से निकालने की गलत नीति के अलावा और कुछ नहीं है। बताना चाहेंगे कि कर्मचारियों को मेडिकल सर्टिफिकेट, कैरेक्टर सर्टिफिकेट, पुलिस वेरिफिकेशन, एक्सपिरियन्स सर्टिफिकेट, पेन कार्ड, कैन्सल चेक आदि देस्तावेज 15 दिनों में जमा करने को कहा गया है, जबकि ज्यादातर कर्मचारियों के पास यह दस्तावेज़ पहले से मौजूद नहीं है और अलग-अलग सरकारी संस्थाओं से इतने कम समय में अलग-अलग सर्टिफिकेट जुटाना और जमा कर पाना संभव नहीं हैं।

यह ध्यान देने की बात है कि पुलिस वेरिफिकेशन के लिए कंपनी के लेटर हेड की जरूरत होती है लेकिन कंपनी के द्वारा कर्मचारियों को अभी तक कोई लेटर जारी नहीं किया गया है। यही नहीं दिल्ली के भीतर ही पुलिस वेरिफिकेशन करवाने के मामले में कम से कम 25 से 30 दिन लग जाते हैं, जबकि कुछ कर्मचारी तो दिल्ली के बाहर उत्तर प्रदेश आदि राज्यों से भी काम करने आते हैं, ऐसे में दिये गए 15 दिनों के कम समय में पुलिस वेरिफिकेशन जमा करना संभव नहीं है। यही नहीं कर्मचारियों को परेशान करने के लिए अनावश्यक दस्तावेज़ जैसे माँ, बाप, बहन, भाई, बेटा, बेटी के बायो डाटा माँगे जा रहे है और उन्हे प्रताड़ित किया जा रहा है। 15-16 साल से काम करने वाले करने वाले कर्मचारियों और खासकर महिला कर्मचारियों से आठवीं की मार्कशीट जमा करने को कहा जा रहा है, जो किसी भी लिहाज से आवश्यक और तर्कसंगत नहीं है।

इस पूरे मामले में इस बिन्दु पर पुनः प्रकाश डालना आवश्यक है कि कई सफाई कर्मचारी 15 से 16 साल से और अनेक सफाई कर्मचारी लंबे समय से विश्वविद्यालय के लिए नौकरी कर रहे हैं। इतनी लंबी अवधि की नौकरी के दौरान पहले भी अनेक टेंडर आते-जाते रहे हैं, लेकिन कर्मचारी काम करते रहे हैं। यह वही सफाई कर्मचारी हैं, जिन्हें कोरोना योद्धा बतलाया गया था और जिन्होंने कोरोना के समय में अपनी जान की परवाह किए बगैर बिना मास्क, ग्लब्स, सेनिटाईजर आदि के काम किया था और एक कर्मचारी कोरोना काल में ही मौत के शिकार भी हुई थी। विश्वविद्यालय को सौंपे गए ज्ञापन के माध्यम एसकेयू ने यह मांग उठाई कि टेंडर बदलने या देस्तावेज न होने कि स्थिति में किसी भी सफाई कर्मचारी, जिसनें दिनांक 14 सितंबर, 2021 तक विश्वविद्यालय के लिए काम किया है, को नौकरी से न निकाला जाये।

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