DU: ऊँचे कट-ऑफ से वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों का भविष्य अधर में



दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू ) के कॉलेजों ने शुक्रवार को स्नातक कोर्सों के लिए पहली कट-ऑफ घोषित किया है, और कट-ऑफ पिछले सालों की तरह बेहद ऊंचा है, और कुछ कोर्सों में तो यह 100 प्रतिशत तक पहुँच रहा है। कट-ऑफ शैक्षणिक रंगभेद ही कहा जा सकता है क्योंकि कट-ऑफ के माध्यम से बहुसंख्यक छात्र जो वंचित परिवारों से आते हैं, उन्हें उच्च शिक्षा से बाहर किया जाता रहा है।

ज्ञात हो कि हर वर्ष दिल्ली के सरकारी स्कूलों के छात्रों के बढ़ते औसतन अंक और पास प्रतिशत की चर्चा होती है। परन्तु, इसके बावजूद सच्चाई है कि सरकारी स्कूलों के बहुसंख्यक छात्रों को डीयू के रेगुलर कॉलेज में एडमिशन नहीं मिलता है। दिल्ली विश्वविद्यालय में पढने के इच्छुक सरकारी स्कूल के छात्रों को एडमिशन लेने के लिए प्राइवेट स्कूल के छात्रों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। इस प्रतिस्पर्धा में वो ऊँचे कट-ऑफ होने के कारण हार जाते हैं और ज्यादातर छात्रों के लिए उच्च शिक्षा का यहीं अंत हो जाता है। ज्ञात हो कि सरकारी स्कूल के यह छात्र ज्यादातर सामाजिक और आर्थिक तौर पर वंचित वर्ग से आते हैं और स्लम और झुग्गी बस्ती में रहते हैं। इन छात्रों को को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी उच्च शिक्षा की ज्यादा ज़रुरत है। इसके विपरीत हर साल उन्हें कट-ऑफ के नाम पर बाहर कर दिया जाता है। साथ ही, इस व्यवस्थागत भेदभाव पर मीडिया में बहस भी नहीं होता, कि किस प्रकार वंचित छात्रों को वंचित रखने में किस तरह कट-ऑफ की नीति काम आती है।

ज्ञात हो कि इस साल करीब 3 लाख छात्रों ने स्नातक के विभिन्न कोर्सों के लिए आवेदन किया है, परन्तु विश्वविद्यालय में बस करीब 70,000 सीटें है जिसका मतलब है कि करीब 2.2 लाख छात्रों को विश्विद्यालय और उच्च शिक्षा से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा। यह वही सरकारी स्कूल के छात्र हैं जिन्होंने खस्ताहाल सरकारी स्कूल व्यवस्था में पढ़ा है। यह वो छात्र होते हैं जिन्हें कट ऑफ के नाम पर विश्वविद्यालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। यह एक तथ्य है कि दिल्ली विश्विद्यालय ने पिछले 30 वर्षो में मात्र दो या तीन कॉलेज ही खोले हैं, जिसकी वजह से सरकारी स्कूलों से पढ़कर आये गरीब छात्रो को उच्च शिक्षा में दाखिला नहीं मिल पाता है। कट-ऑफ के जरिये इस सीट की कमी को सरकार द्वारा छिपा लिया जाता है। यही नहीं, बजाये की नए कॉलेज खोलकर इस सीट की कमी को पूरा किया जाए सरकार विश्विद्यालय से सम्बन्ध कॉलेजों को स्वायत्ता देने के नाम पर निजीकरण करने की कोशिश में जुटी है जिसके कारण वंचित वर्ग से आये छात्रो से उनके जीवन को बेहतर बनाने का एकमात्र रास्ता भी छीन लिया जायेगा। एक बार यदि कॉलेज को स्वायत्ता मिल जाये तो वे ट्रस्ट जो इन कॉलेजों को चला रहे है उन्हें छात्रो से अत्यधिक फीस लेना पड़ेगा क्योंकि तब विश्विद्यालय अनुदान आयोग द्वारा दी जा रही राशि इन कॉलेजों से वापस ले ली जाएगी जो कि पूरे खर्चे का 95% है।

ऊँचे कट-ऑफ और कम सीटें कई कारण से बेहद समस्यापूर्ण हैं। ज्ञात हो कि कम सीटों के कारण आरक्षित सीटें भी कम रहेंगी, जिस कारण दलितों को शोषण से बाहर निकालने की बात हमेशा ही एक दूर का स्वप्न रहती है। इस कारण उच्च शिक्षा में आने के इच्छुक दलित छात्र सीटें न होने के कारण अपने जातीय कामों में फंसने को मजबूर हो जाते हैं व शिक्षा के माध्यम से अपनी सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से बाहर निकलने के एकमात्र विकल्प से भी वंचित हो जाते हैं।

क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस) से भीम ने कहा कि वे आने वाले दिनों में दिल्ली के विभिन्न विश्वविद्यालयों की भेद-भावपूर्ण शिक्षा नीति के खिलाफ अपना संघर्ष तेज़ करेगा। साथ ही, ऊंचे कट-ऑफ के खिलाफ सोमवार को विरोध प्रदर्शन की घोषणा करता है।

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