त्रिपुरा में फैक्ट फाइंडिंग टीम के दो वकीलों पर लगाए गए UAPA के खिलाफ दिल्ली में विरोध प्रदर्शन


दिल्ली:
क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस), स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (एसएफआई), आईसा, ऐक्टू व अन्य संगठनों के कार्यकर्ताओं ने 5 नवंबर, शुक्रवार को दिल्ली स्थित त्रिपुरा भवन पर आयोजित विरोध प्रदर्शन में हिस्सेदारी निभाई।

यह प्रदर्शन त्रिपुरा में सांप्रदायिक हिंसा के पश्चात गई एक फैक्ट फाइंडिंग टीम के दो वकीलों पर लगाए गए 'गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए)' के खिलाफ आयोजित किया गया था। एडवोकेट अंसर इंदौरी और एडवोकेट मुकेश चार सदस्यों की एक टीम के साथ 29 और 30 अक्टूबर को त्रिपुरा गए जिसके बाद उन्होंने "ह्यूमैनिटी अंडर अटैक इन त्रिपुरा" नामक रिपोर्ट जारी की जिसके अनुसार त्रिपुरा की सांप्रदायिक हिंसा में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय की कई मस्जिदों, दुकानों और घरों को नुकसान पहुंचाया गया।

इस रिपोर्ट में विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल आदि जैसे गुटों की भूमिका पर भी ध्यान डाला गया है, जिन्होंने अपनी रैली में नफरत फ़ैलाने और भीड़ को उकसाने का प्रयास किया। यह रैली तथाकथित रूप से बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हुई सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ रोष व्यक्त करने के लिए रखी गई थी। पर इस रैली से पानीसगर डिवीजन में मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा करने के लिए आह्वान किया गया।

इस टीम की आवाज़ को दबाने के लिए एडवोकेट अंसर इंदौरी और ऐडवोकेट मुकेश को यूएपीए के तहत नोटिस भेजा गया है। साथ ही साथ, उन पर भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी) की कई धाराएं लगाई गईं हैं। पुलिस और सरकार द्वारा उनको डराए जाने के प्रयासों के बावजूद दोनों वकील अपनी रिपोर्ट और सोशल मीडिया पर लिखे सार्वजनिक पोस्ट्स में कही बातों पर अडिग हैं।

यूएपीए और अन्य आतंक विरोधी कानूनों को अक्सर जनता के विरोध स्वर को दबाने के लिए इस्तेमाल किया जाना अब एक आम प्रक्रिया बन गई है। यह भयावह स्थिति है क्योंकि इन कानूनों का इस्तेमाल कर के सरकार ऐसे सांप्रदायिक मामलों में खुद की मिलीभगत से जनता का ध्यान दूर खींचना चाहती है। हिंसा के लिए जिम्मेदार दोषियों को ढूंढ कर उन्हे कड़ी सजा देने के बजाय सरकार ने न्याय मांग रही लोकतांत्रिक आवाजों को ही चुप कराने का प्रयत्न किया है।

प्रदर्शन स्थल पर मौजूद केवाईएस से भीम ने कहा, "संगठन यह मांग करता है कि फैक्ट फाइंडिंग टीम के वकीलों पर लगाए निराधार आरोपों को तुरंत वापस लिया जाए। यूएपीए और अन्य आतंक विरोधी कानूनों की ऐतिहासिक जड़ें उपनिवेशी सरकारों के राज में हैं, जो लगातार इन कानूनों से देश में आजादी की मांग उठाने वालों को दबाने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा था। आज इन कानूनों को रद्द करने की जरूरत है क्योंकि लोकतंत्र में इनकी कोई जगह नहीं है।"

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !